भारत में क्रेडिट स्कोर, प्राइवेट ऐप्स और उपभोक्ता की परेशानी
भारत में क्रेडिट स्कोर, प्राइवेट ऐप्स और उपभोक्ता की परेशानी
भारत में जब कोई व्यक्ति लोन लेना चाहता है, तो सबसे पहले उसकी क्रेडिट हिस्ट्री और क्रेडिट स्कोर चेक की जाती है। यह स्कोर आमतौर पर "सिविल स्कोर" (CIBIL Score) के नाम से जाना जाता है। लेकिन आम लोगों के लिए यह समझना आसान नहीं है कि क्यों अलग-अलग साइट्स और ऐप्स पर एक ही व्यक्ति का स्कोर अलग-अलग आता है और क्यों इसके कारण लोन लेने वालों को दिक्कत होती है।
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अलग-अलग साइट्स पर अलग स्कोर क्यों?
भारत में केवल एक ही CIBIL नहीं है, बल्कि कुल चार मान्यता प्राप्त क्रेडिट ब्यूरो हैं –
1. CIBIL (TransUnion)
2. Experian
3. Equifax
4. CRIF Highmark
हर ब्यूरो का डेटा अलग-अलग हो सकता है, क्योंकि बैंक और एनबीएफसी कभी-कभी सभी ब्यूरो को समय पर अपडेट नहीं करते। किसी में पेमेंट जल्दी अपडेट हो गया तो किसी में देर से। इसके अलावा हर ब्यूरो का एल्गोरिद्म अलग होता है। यही कारण है कि एक ही व्यक्ति का स्कोर एक साइट पर 720 दिखता है और दूसरी पर 680।
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लोन लेने वालों को दिक्कत क्यों होती है?
यहाँ असली दिक्कत लोन लेने वाले के सामने आती है।
अगर एक बैंक CIBIL देख रहा है और दूसरा Experian, तो रिजल्ट अलग होगा।
कई बार एक बैंक स्कोर को अच्छा मान लेता है और दूसरा रिजेक्ट कर देता है।
EMI या पेमेंट क्लियर करने के बाद भी सभी ब्यूरो में अपडेट आने में 30-45 दिन लग सकते हैं।
इसलिए ग्राहक के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि असली स्कोर कौन-सा है।
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क्या इसमें ग्राहक की गलती है?
नहीं। इसमें ग्राहक की कोई गलती नहीं होती।
वह समय पर EMI भरता है तो उसकी ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है।
बैंक और एनबीएफसी की जिम्मेदारी है कि सही डेटा ब्यूरो तक पहुँचाएँ।
ब्यूरो का फॉर्मूला और डेटा अपडेट ग्राहक के हाथ में नहीं होता।
ग्राहक की भूमिका सिर्फ इतनी है कि वह समय पर पेमेंट करे, अपनी रिपोर्ट समय-समय पर चेक करे और गलती दिखे तो शिकायत करे।
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क्या सरकार को कदम उठाना चाहिए?
जी हाँ। अगर भारत सरकार या RBI एक राष्ट्रीय क्रेडिट स्कोर पोर्टल / ऐप बनाए, तो इससे बहुत सी समस्याएँ खत्म हो सकती हैं।
सभी ब्यूरो का डेटा एकीकृत (consolidated) रूप में उपलब्ध होगा।
ग्राहक को भ्रम नहीं होगा कि कौन-सा स्कोर सही है।
पारदर्शिता बढ़ेगी और शिकायतें आसान होंगी।
बैंक और ग्राहक दोनों के लिए एक ही मानक होगा।
अमेरिका जैसे देशों में पहले से ही यह सुविधा है, जहाँ साल में एक बार नागरिक अपनी पूरी क्रेडिट रिपोर्ट मुफ्त देख सकते हैं।
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प्राइवेट कंपनियों की भूमिका
आज बहुत सारी फिनटेक कंपनियाँ और मोबाइल ऐप्स “फ्री सिविल चेक” का लालच देकर ग्राहकों से डेटा लेती हैं और कई बार उनसे पैसे भी वसूलती हैं।
कुछ कंपनियाँ ₹500 से ₹1200 तक चार्ज करके “क्रेडिट रिपोर्ट” बेचती हैं।
कुछ तो सिर्फ ₹50–₹100 लेकर “CIBIL चेक” के नाम पर पैसा लेते हैं।
असल में ये कंपनियाँ खुद स्कोर नहीं बनातीं, बल्कि किसी ब्यूरो से टाई-अप करके डेटा दिखाती हैं।
यहाँ खतरा यह भी है कि ये ऐप्स ग्राहक का PAN, मोबाइल नंबर और ईमेल इकट्ठा करके मार्केटिंग या लोन एजेंट्स को बेच सकते हैं।
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RBI की भूमिका और शिकायतें
RBI ने केवल चार ब्यूरो को लाइसेंस दिया है। फिनटेक ऐप्स सीधे RBI से नियंत्रित नहीं होते, इसलिए उन पर कार्रवाई मुश्किल होती है। यही वजह है कि RBI में इस विषय पर आई कई शिकायतें पेंडिंग रहती हैं।
असल समस्या यह है कि –
Regulatory Gap है यानी ऐप्स के लिए स्पष्ट नियम नहीं हैं।
शिकायत निवारण की प्रक्रिया लंबी और धीमी है।
पारदर्शिता की कमी से ग्राहक हमेशा कंफ्यूज रहता है।
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समाधान क्या है?
1. ग्राहक के लिए
हमेशा फ्री रिपोर्ट सीधे ब्यूरो की वेबसाइट से डाउनलोड करें।
किसी ऐप को पैसे न दें।
अगर कोई कंपनी पैसे लेती है, तो कस्टमर केयर और फिर RBI Ombudsman में शिकायत करें।
2. सरकार के लिए
एक राष्ट्रीय क्रेडिट स्कोर पोर्टल बनाना चाहिए।
सभी फिनटेक ऐप्स को सख्त गाइडलाइन के तहत लाना चाहिए।
जनता को जागरूक करना चाहिए कि रिपोर्ट फ्री में उपलब्ध है।
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RTI और नागरिक की शक्ति
अगर कोई व्यक्ति इस सिस्टम से परेशान है, तो वह RTI (सूचना का अधिकार) के तहत RBI या वित्त मंत्रालय से सवाल पूछ सकता है, जैसे –
कितनी शिकायतें आईं और उन पर क्या कार्रवाई हुई?
क्या प्राइवेट ऐप्स को स्कोर बेचने का अधिकार है?
सरकार कब एकीकृत पोर्टल लाएगी?
इस तरह की सामूहिक आवाज़ ही सिस्टम में बदलाव ला सकती है।
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निष्कर्ष
भारत में क्रेडिट स्कोर की मौजूदा व्यवस्था आम जनता के लिए जटिल और भ्रमित करने वाली है। अलग-अलग ब्यूरो और प्राइवेट ऐप्स ने इसे और उलझा दिया है। ग्राहक को बेवजह दोषी ठहराया जाता है, जबकि असली कमी नीति और पारदर्शिता में है।
अगर सरकार और RBI एक एकीकृत पोर्टल लाएँ, नियम कड़े करें और जनता को जागरूक करें, तो न केवल लोन लेने वालों को राहत मिलेगी, बल्कि वित्तीय व्यवस्था भी और मजबूत होगी।
जागरूक रहें.
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