अखंड विष्णु कार्याम
अखण्ड विष्णु कार्यम्
यह मंत्र एक अत्यंत दिव्य और गूढ़ अर्थ रखने वाला श्लोक है, जो भगवान नारायण (विष्णु) और उनके अवतार महर्षि व्यास को समर्पित है। आइए इस मंत्र की व्याख्या और इसके जप की विधि को विस्तार से जानते हैं।
मंत्र:
"अखण्ड विष्णु कार्यम् व्यासनेन चराचरम्
तत्पदम दर्शितं येन तस्मै श्री लक्ष्मीयाय नमः
नारायण नारायण नारायण"
*शब्दार्थ और व्याख्या*
1. अखण्ड विष्णु कार्यम्:
"अखण्ड" का अर्थ है "जिसमें कोई भंग न हो"।
"विष्णु कार्यम्" यानी भगवान विष्णु का कार्य — जो सृष्टि की रक्षा और धर्म की स्थापना से जुड़ा है।
भावार्थ: यह सम्पूर्ण जगत विष्णु का कार्य है, और यह कार्य अखण्ड रूप से चलता रहता है।
2. व्यासनेन चराचरम्:
"व्यासनेन" का तात्पर्य है "वेदव्यास द्वारा"।
"चराचरम्" यानी "सभी चल और अचल जीव"।
🔸 भावार्थ: वेदव्यास जी ने इस चराचर जगत की दिव्यता और विष्णु के कार्य को उद्घाटित किया।
3. तत्पदम दर्शितं येन:
"तत् पदम्" यानी वह परम पद, जो मोक्ष का लक्ष्य है — भगवान का धाम।
"दर्शितं येन" — जिसे प्रकट किया गया, दिखाया गया।
🔸 भावार्थ: जिन महापुरुष ने उस परम पद (मोक्ष रूपी भगवान का स्वरूप) का दर्शन कराया — वे ही पूजनीय हैं।
4. तस्मै श्री लक्ष्मीयाय नमः:
"तस्मै" — उसे / उनको।
"श्री लक्ष्मीयाय" — यहाँ लक्ष्मीपति भगवान नारायण का बोध होता है।
🔸 भावार्थ: उन लक्ष्मीपति विष्णु को नमस्कार है।
5. नारायण नारायण नारायण:
यह भगवान विष्णु के पवित्र नाम का जप है, जो अंत में श्रद्धा भाव से बारंबार बोला जाता है मंत्र के अंत में तीन बार नारायण का बोलना ना भूले
धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व
यह मंत्र विष्णु के अखण्ड कार्य, वेदव्यास की दिव्य दृष्टि, और परम पद (मोक्ष) के ज्ञान को समर्पित है। यह श्लोक वेदों, पुराणों और उपनिषदों में प्रतिपादित उस सनातन मार्ग का सार है जो जीव को परमात्मा से मिलाता है।
*जप विधि*
जप का समय:- ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे)
विष्णु के विशेष दिन: गुरुवार, एकादशी, वैकुण्ठ एकादशी
विशेष अवसर: गुरु पूर्णिमा, व्यास पूजा
आसन एवं दिशा:- पीला वस्त्र धारण करें
कुशासन या ऊन के आसन पर बैठें
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें
संकल्प:
"ॐ विष्णवे नमः" कहकर संकल्प करें कि आप भक्ति भाव से मंत्र का जप कर रहे हैं।
माला:
तुलसी की माला सर्वोत्तम मानी गई है
जप संख्या:- कम से कम 108 बार (1 माला)
भाव:
भगवान विष्णु और वेदव्यास के प्रति श्रद्धा रखें
मोक्ष, शांति और विवेक की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जप करें
लाभ
मन की शुद्धि और चित्त की स्थिरता
विष्णु कृपा से जीवन के दुःखों का नाश
आत्मज्ञान और गुरु-कृपा की प्राप्ति
मोक्ष की ओर अग्रस होता है.
"अखण्ड विष्णु कार्यम्..." मंत्र का जप केवल वाणी से न होकर मन, चित्त और आत्मा से जुड़कर किया जाए तो यह भक्ति साधना का एक अत्यंत शक्तिशाली साधन बनता है। नीचे एक संक्षिप्त और प्रभावी भक्ति साधना अभ्यास बताया गया है, जिसे प्रतिदिन 15–30 मिनट देकर किया जा सकता है।
भक्ति साधना का संक्षिप्त अभ्यास
1. स्थान और वातावरण तैयार करें
शांत, स्वच्छ स्थान चुनें (घर में पूजा स्थल या एकांत कोना)
दीपक जलाएं (घी का दीपक हो तो उत्तम)
तुलसी पत्र और जल पात्र रखें
श्रीविष्णु या वेदव्यास जी का चित्र/मूर्ति सामने रखें
2. आसन और मुद्रा
पीले वस्त्र पहनें (शुभता हेतु)
कुशासन या ऊन का आसन लें
पद्मासन या सुखासन में बैठें, रीढ़ सीधी रखें
हाथों की मुद्रा: ज्ञान मुद्रा या नमस्कार मुद्रा
3. श्वास-साधना (2–3 मिनट)
> 👉 यह चित्त को स्थिर और मन को शांत करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
गहरी श्वास लें (4 सेकंड)
रोकें (4 सेकंड)
धीरे-धीरे छोड़ें (6 सेकंड)
यह चक्र 5 बार दोहराएं
4. ध्यान और भावना जाग्रत करें
आँखें बंद करें
कल्पना करें कि भगवान विष्णु लक्ष्मीजी के साथ क्षीरसागर में विराजमान हैं
उनके चरणों में स्वयं को समर्पित करें
मन में यह भावना रखें:
"हे नारायण! आप ही चराचर के आधार हैं। मुझे भी अपने दिव्य कार्य का एक अंश बनने की कृपा दें।"
5. मंत्र जप (10–15 मिनट)
मंत्र:
"अखण्ड विष्णु कार्यम् व्यासनेन चराचरम्
तत्पदम दर्शितं येन तस्मै श्री लक्ष्मीयाय नमः
नारायण नारायण नारायण"
1 तुलसी माला (108 बार) करें
जप करते समय भगवान की छवि को ध्यान में रखें
6. स्तुति और समर्पण (अंत में)
कुछ क्षण मौन रहकर भावपूर्ण प्रार्थना करें:
"हे प्रभो! जैसे वेदव्यास ने आपकी दिव्यता को प्रकट किया, वैसे ही मुझे भी सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें। मेरे कर्म आपके कार्य के पूरक बनें।"
7. दैनिक नियम (अनुशंसा)
यह साधना प्रतिदिन प्रातः (या संध्या) करें
गुरुवार, एकादशी, और पूर्णिमा को विशेष श्रद्धा से करें
प्रत्येक साधना के बाद थोड़ा तुलसी जल या चरणामृत लें
लाभ और प्रभाव
मानसिक शांति और चेतना का उत्थान
आत्मबल और निष्ठा में वृद्धि
गुरु-कृपा और भगवान विष्णु की अनुकंपा
कर्म, ज्ञान और भक्ति में संतुलन
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नोट- मंत्र कोई भी हो बगैर नियम कर्म के उचित फल नहीं देते है... आजकल कई ज्ञानी मन्त्रों का ज्ञान परोसते है की फला मंत्र 11 बार कही भी बैठ कर खडे होकर 11 दिन तक करे तो आपके कार्य बनने लगेंगे धन आने लगेगा इस तरह का मार्गदर्शन करने वाले स्वयं अज्ञानी है जब किसी मनुष्य को बुखार होता है या पेट दर्द होता है तो क्या उस मर्ज को समाप्त करने के लिए एक ही दवा कार्य करेगी...? नहीं ना वैसे ही वैदिक शास्त्रों में हर समस्याओं के अलग अलग मंत्र दिए गए है इसीलिए बगैर मार्गदर्शन के किसी भी मंत्र को जपना यानि मुसीबत मोल लेना होता है.
Astro-db anusandhan
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