सुन्दरकाण्ड
सुन्दरकाण्ड
यह श्लोक भगवान श्रीराम की स्तुति में रचा गया है, जिसमें उनके दिव्य, शाश्वत, और करुणामय स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसका संस्कृत से हिन्दी भावार्थ नीचे प्रस्तुत है:
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श्लोक:
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥१॥
शब्दार्थ और भावार्थ:
शान्तं – जो शांतस्वरूप है,
शाश्वतम् – नित्य और अविनाशी,
अप्रमेयम् – जिसे मापा नहीं जा सकता,
अनघम् – पापरहित,
निर्वाणशान्तिप्रदं – मोक्ष रूपी शांति प्रदान करने वाला,
ब्रह्मा-शम्भु-फणीन्द्र-सेव्यम् – ब्रह्मा, शिव और शेषनाग द्वारा सेवित,
अनिशं – निरंतर,
वेदान्तवेद्यं – जिसे वेदान्त से जाना जा सकता है,
विभुम् – सर्वव्यापी,
रामाख्यं – जिनका नाम राम है,
जगदीश्वरं – समस्त जगत के ईश्वर,
सुरगुरुं – देवताओं के गुरु तुल्य,
माया-मनुष्यं – माया से मनुष्य रूप में प्रकट,
हरिं – भगवान विष्णु,
वन्देऽहं – मैं वंदना करता हूँ,
करुणाकरं – करुणा के सागर,
रघुवरं – रघुवंश में श्रेष्ठ,
भूपाल-चूडामणिम् – समस्त राजाओं के बीच मुकुटमणि।
हिन्दी भावार्थ:
मैं उन भगवान श्रीराम की वंदना करता हूँ जो शांतस्वरूप, शाश्वत, अप्रमेय, और निष्पाप हैं। जो मोक्षरूपी परम शांति प्रदान करते हैं, जिन्हें ब्रह्मा, शिव और शेषनाग निरंतर सेवा करते हैं। वे वेदान्त से जानने योग्य और सर्वव्यापी हैं। श्रीराम ही समस्त जगत के ईश्वर हैं, देवताओं के गुरु समान हैं, माया से मनुष्य रूप में अवतरित हुए विष्णु हैं, करुणा के सागर हैं, रघुवंश में श्रेष्ठ हैं, और समस्त राजाओं के शिरोमणि हैं।
क्रमशः
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