धर्म- जीवन का आधार-2

धर्म- जीवन का आधार

भारतीय संस्कृति और दर्शन में ‘धर्म’ शब्द को बहुत व्यापक अर्थों में लिया गया है। सामान्यतः लोग धर्म को केवल पूजा-पाठ, मंदिर या धार्मिक कर्मकांड से जोड़कर देखते हैं, जबकि वास्तव में धर्म का अर्थ इससे कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। धर्म जीवन का वह मूल सिद्धांत है, जो मनुष्य को कर्तव्य, मर्यादा, सत्य, न्याय, करुणा और ईमानदारी से जोड़ता है। यही कारण है कि धर्म को मानव जीवन का आधार कहा गया है।

1. धर्म का वास्तविक अर्थ

संस्कृत में ‘धृ’ धातु से धर्म शब्द बना है, जिसका अर्थ है – धारण करना या संभालना। धर्म वही है जो इस संसार को, समाज को और व्यक्ति के जीवन को संभाले और टिकाए रखे।

धर्म का अर्थ केवल धार्मिक पहचान (हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई आदि) नहीं है, बल्कि वह आचरण है जो मानवता को सुरक्षित रखे और जीवन को सही दिशा दे।

2. धर्म और कर्तव्य

धर्म का पहला और सबसे महत्वपूर्ण रूप है – कर्तव्य पालन। हर व्यक्ति के जीवन में अनेक भूमिकाएँ होती हैं – पुत्र, पति, पत्नी, माता-पिता, नागरिक, शिक्षक, विद्यार्थी आदि। हर भूमिका के साथ कुछ जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य जुड़े होते हैं।

धर्म हमें यह सिखाता है कि हम अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से पालन करें। यही सच्चा धर्म है।

3. सत्य और धर्म

‘सत्यं धर्मः– वेदों और उपनिषदों में कहा गया है कि धर्म का आधार सत्य है।

जो व्यक्ति सत्य बोलता है, सत्य का पालन करता है, उसका जीवन स्वतः ही धर्ममय हो जाता है। असत्य, छल और कपट जीवन को अस्थिर कर देते हैं।

4. धर्म और न्याय

धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है – न्याय। धर्म हमें सिखाता है कि हमें दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और कभी अन्याय नहीं करना चाहिए।

 महाभारत में भी कहा गया है – “धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
इसका अर्थ है कि यदि हम न्याय और धर्म के मार्ग पर चलेंगे तो अंततः हमारा जीवन सुरक्षित और सफल होगा।

5. धर्म और करुणा

धर्म का वास्तविक रूप केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। यह दया, करुणा और सेवा से भी प्रकट होता है।

भूखे को भोजन देना, बीमार की सेवा करना, दुखी को सांत्वना देना, गरीब की मदद करना – ये सब धर्म के स्वरूप हैं।
ऐसा आचरण ही समाज को मानवीय और संवेदनशील बनाता है।

6. धर्म और समाज

धर्म केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता। यह समाज को भी संगठित और संतुलित बनाता है। यदि हर व्यक्ति अपने धर्म (कर्तव्य और नैतिकता) का पालन करे तो समाज में अराजकता, अपराध और अन्याय की स्थिति ही उत्पन्न नहीं होगी।

धर्म हमें सिखाता है कि हमें केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए भी जीना चाहिए।

7. धर्म और परिवार

परिवार को समाज की सबसे छोटी इकाई कहा गया है। परिवार में यदि धर्म का पालन हो – बड़ों का सम्मान, छोटों पर स्नेह, स्त्री-पुरुष में समानता, माता-पिता का आदर, बच्चों का सही पालन-पोषण – तो परिवार सुखी और समृद्ध होता है। धर्म परिवार को जोड़ने वाली कड़ी है।

8. धर्म और आत्मा

धर्म का एक गहरा पक्ष है – आत्मा की शुद्धि। जब व्यक्ति धर्म का पालन करता है तो उसका मन शांत होता है, आत्मा प्रसन्न होती है और उसे आत्मज्ञान की ओर बढ़ने का अवसर मिलता है।

धर्म आत्मा को उच्चतर चेतना की ओर ले जाता है, जिससे जीवन केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी बनता है।

9. धर्म और पुरुषार्थ

भारतीय दर्शन में जीवन के चार पुरुषार्थ बताए गए हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इनमें धर्म को सबसे पहला स्थान दिया गया है।

अर्थ (धन) और काम (इच्छाएँ) तभी सार्थक हैं जब वे धर्म के अधीन हों। यदि अर्थ और काम धर्म से अलग हो जाएँ, तो वे व्यक्ति और समाज दोनों के लिए विनाशकारी बन जाते हैं। इसलिए धर्म को जीवन का आधार कहा गया है।

10. धर्म और आधुनिक जीवन

आज का युग भौतिकता और प्रतिस्पर्धा का युग है। ऐसे समय में धर्म की आवश्यकता और भी अधिक हो जाती है।

यदि लोग धर्म (कर्तव्य, सत्य, न्याय, करुणा) का पालन न करें तो रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, हिंसा, स्वार्थ और अन्याय समाज को खोखला कर देंगे।
इसलिए आधुनिक जीवन में धर्म का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।

11. धर्म और वैश्विक दृष्टिकोण

वेदों और उपनिषदों ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का संदेश दिया – पूरी पृथ्वी एक परिवार है। यही धर्म का वैश्विक स्वरूप है।

यदि सभी देश और समाज धर्म की भावना को समझें तो युद्ध, हिंसा और आतंकवाद का अंत हो सकता है और विश्व में शांति स्थापित हो सकती है।

धर्म मानव जीवन का सबसे मजबूत आधार है। यह केवल पूजा या कर्मकांड नहीं, बल्कि जीवन जीने की सही दिशा है।

1. धर्म हमें कर्तव्य पालन सिखाता है।

2. धर्म सत्य और न्याय की रक्षा करता है।

3. धर्म करुणा और सेवा की भावना जगाता है।

4. धर्म समाज और परिवार को संगठित करता है।

5. धर्म आत्मा को शुद्ध करता है और मोक्ष की ओर ले जाता है।

 इसीलिए कहा गया है कि “धर्म ही जीवन का वास्तविक आधार है”। धर्म के बिना जीवन अराजक और असंतुलित हो जाता है, जबकि धर्म के साथ जीवन सुखमय, शांतिपूर्ण और सार्थक बन जाता है।

क्रमशः

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अखंड विष्णु कार्याम

राम

सुन्दरकाण्ड