विवाह-मेलापक
विवाह-मेलापक तथा मंगल, गुरु एवं सूर्य पर विचार।
"धन्यो गृहस्थाश्रमः" विवाह गृहस्थाश्रमसे सम्बन्धित प्रथम संस्कार है। अतः विवाहसे सम्बन्धित अनेक बिन्दुओं - मेलापक, मंगली जन्मपत्री, गुरु एवं सूर्यसे सम्बन्धित दान आदि अनेकानेक स्थितियोंपर विचार करना अत्यन्त आवश्यक होता है। होडाचक्रके अनुसार नक्षत्रों एवं राशियोंका ज्ञान परम आवश्यक है। इसके अतिरिक्त विवाहसे सम्बन्धित वर्णगुण, वश्यगुण, तारागुण, योनिगुण, ग्रहमैत्रीगुण, गणगुण, राशिकूटगुण एवं नाड़ी- कूटगुणोंका विचार विशेष महत्त्व रखता है। साथ ही गुरु एवं सूर्यसे सम्बन्धित दान आदिपर भी संशयकी स्थितिका निवारण परम आवश्यक हो जाता है।
मेलापकविचार – गृहस्थको अपनी कन्याके लिये वर निश्चित करते समय वरके कुल, शरीर, विद्या, अवस्था, धन, गुण एवं स्वास्थ्यदशापर अवश्य ही विचार करना चाहिये। बहुत ही समीप या बहुत दूर कन्याका विवाह नहीं करना चाहिये। वर-कन्याके नक्षत्र के अनुसार राशिनिर्धारण करते हुए गुणैक्यबोधकचक्रसे गुणोंकी जानकारी कर लेना चाहिये। सामान्यतया अठारह गुणोंसे अधिक गुण बननेपर विवाह शुभ एवं करणीय होता है। इसके साथ ही वर्णविचार करना चाहिये।
जन्मपत्रिका - मंगलीविचार एवं परिहार-
विवाहके समय जन्मपत्रिकामें अन्य विचार-विमर्शके साथ ही जातकके मंगली होनेकी दशामें जातकके माता-पिता विशेष चिन्तित हो जाते हैं। अतः मंगलदोषके विविध पहलुओं पर विचार करना चाहिये। मंगलदोषको कुजदोष भी कहते हैं। ज्योतिषियोंकी अज्ञानताके कारण कभी-कभी अमांगलिक जन्मपत्रिकाको भी मांगलिक बताकर विवाहमें रोक लगा दी जाती है। अतः इस प्रकरणपर गहन विवेचनकी आवश्यकता है।
ज्योतिषग्रन्थोंमें मांगलिक जन्मपत्रिकाके मंगलदोषका विवेचन इस प्रकार मिलता है-
"लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे ।
कन्या भर्तुर्विनाशाय भर्ता पत्नीविनाशकृत् ॥"
इस श्लोकसे स्पष्ट हो जाता है कि जन्मपत्रिकाके लग्न (प्रथम भाव), चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव एवं द्वादश भावमेंसे किसी भी भावमें मंगलका होना जन्मपत्रिकाको मांगलिक बना देता है। इस दोषसे प्रभावित पुरुष जातकको मौलि या मंगला तथा स्त्रीजातकको मंगली या चुनरी स्थानभेदसे माना जाता है।
प्रथम भाव (लग्नस्थान ) में मंगल - जब जातककी जन्मपत्रिकाके प्रथम भाव (लग्नस्थान) - -में वृष या तुलाका मंगल होता है तो जातकके स्वास्थ्यपर बुरा प्रभाव डालता है, ऐसा जातक क्रोधी, झगड़ालू, जिद्दी स्वभावका हो जाता हैं।
चतुर्थ भावमें मंगल - चतुर्थ भावमें यदि स्वगृही या उच्चका मंगल है तो कृषि, पशुपालनमें रुचि रहती है तथा माता-पिताका सुख पाता है, परंतु यदि मंगल मिथुन, कन्या, मकर या कुम्भका हो तो माता-पिताके सुखसे वंचित होता है तथा परिजनोंसे विरोध रहता है। अग्निका भय बना रहता है।
सप्तम भावमें मंगल-सप्तम भावमें मंगल होनेपर जातकमें बुद्धिकी कमी रहती है, स्वास्थ्य दुर्बल रहता है। मिथुन या कन्याका मंगल होनेपर दो विवाह होते हैं, पर दोनोंके अनिष्टकी आशंका रहती है। स्वगृही ( मेष या वृश्चिक) - का मंगल या उच्च (मकर) -का मंगल होनेपर स्त्रीसुख मिलता है तथा व्यापारमें सफल रहता है। मकर या कुम्भका मंगल जातकको दुराचारी बनाता है।
अष्टम भावमें मंगल – स्वगृही (मेष या वृश्चिक) या उच्च (मकर) का मंगल उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायुष्य देता है, किंतु नीच (कर्क) का मंगल स्वास्थ्यकी हानि करता है। वृष और तुलाका मंगल स्त्रीकी ओरसे दुःख तथा व्यापारमें धनकी हानि कराता है। सिंहका मंगल धन एवं स्वास्थ्यकी हानिके साथ ही अल्पायु बनाता है। पत्नी कर्कशा मिलती है।
द्वादश भावमें मंगल - दाम्पत्यजीवनमें असन्तुष्टि, धन एवं विद्याकी कमी, स्वगृही या उच्चका मंगल लोभी बनाता है, नीच (कर्क) का मंगल होनेपर दुराचारमें धननाश कराता है। सिंहका मंगल राजदण्डका भागी बनाता है। मिथुन और कन्याका मंगल अहंकारी बनाता । धनु या मीनका मंगल सबसे विरोध तथा धनका अपव्यय कराता है।
भौमपंचकदोष – सभी ग्रह अपनेसे सातवें भावको देखते हैं अर्थात् सभी ग्रह सातवीं दृष्टिवाले होते हैं, परंतु मंगल, गुरु और शनिकी सातवीं दृष्टिके अतिरिक्त अन्य विशिष्ट दृष्टियाँ भी मानी गयी हैं। यथा- मंगलकी चौथी और आठवीं दृष्टि, गुरुकी पाँचवीं और नवीं दृष्टि तथा शनिकी तीसरी और दसवीं दृष्टि होती. है। ये जिस भावको देखते हैं, उसे भी अपने प्रभावसे प्रभावित करते हैं।
प्रथम (लग्न), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम द्वादश भावमें मंगलदोषके अतिरिक्त सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु—ये पाँच अशुभ ग्रह भी अपनी दृष्टि या युतिसे जन्मपत्रिकाके भावोंको देखते हैं तथा उक्त भावोंके फलको नष्ट या कम करनेमें सक्षम होते हैं। ये ग्रह भी जन्मपत्रिकाके प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भावोंमें होते हैं अथवा इन ग्रहोंपर इनकी दृष्टि पड़ती है तो ये भी जातकके स्वास्थ्य, भोगविलास तथा दाम्पत्य जीवनको प्रभावित करते हैं।
मंगलदोषप्रभावी मांगलिक जन्मपत्रिकाएँ मंगलप्रभावी मांगलिक जन्मपत्रिकाएँ तीन प्रकारकी होती हैं-
१- मांगलिक जन्मपत्रिका - जब मंगल जन्मपत्रिकाके १।४। ७ । ८ । १२ भावोंमेंसे किसी भी भावमें होता है तो जन्मपत्रिका मांगलिक कहलाती है।
२- द्विबल मांगलिक जन्मपत्रिका - जब मंगल १।४ । ७ । ८ । १२ भावोंमें होनेके साथ-साथ नीच (कर्कराशि) का भी हो तो मंगलका दुष्प्रभाव दो गुना हो जाता है अथवा १।४ । ७ । ८ । १२ भावोंमें मंगलके अलावा सूर्य, शनि, राहु केतुमेंसे कोई ग्रह बैठा हो तो जन्मपत्रिका द्विबल मांगलिक होती है।
३- त्रिबल मांगलिक जन्मपत्रिका-नीच (कर्कराशि) - का मंगल यदि १ । ४ । ७ । ८ । १२ भावमें हो तथा शनि, राहु, केतु भी उक्त भावोंमें हों तो मंगलका दुष्प्रभाव तीन गुना हो जाता है। ऐसी जन्मपत्रिका त्रिबल मांगलिक कहलाती है।
मंगलदोषका परिहार- जातककी जन्मपत्रिका मांगलिक होनेपर माता-पिता चिन्तित हो जाते हैं; क्योंकि ज्योतिषशास्त्रके अल्पज्ञ ज्योतिषियोंने अनेक प्रकारकी भ्रान्तियाँ फैला रखी हैं, किंतु इनमेंसे अधिकांश जन्मपत्रिकाएँ ऐसी होती हैं, जिनमें मंगलदोषका परिहार सहजरूपेण हो जाता है-
१- यदि पुरुषकी जन्मपत्रिका मांगलिक हो तथा स्त्रीकी जन्मपत्रिकाके १ । ४ । ७ । ८ । १२ भावोंमें सूर्य, शनि, राहु हो तो जन्मपत्रिका मंगलदोषसे मुक्त हो जाती है।
२- जिस भावमें मंगल बैठा हो, उस भावका स्वामी ज्योतिषकी दृष्टिसे बलवान् हो तथा उसी भावमें बैठा हो या उस भावमें उसकी दृष्टि पड़ रही हो, पुनः सप्तमेश या शुक्र तीसरे भावमें बैठा हो तो मंगलदोष नहीं माना जायगा।
३- मेषका मंगल लग्नमें, वृश्चिकका चतुर्थ भावमें, वृषका सप्तम भावमें, कुम्भका अष्टम भावमें तथा धनुका द्वादश भावमें हो तो मंगलदोष नहीं माना जाता-
"अजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके स्थिते ।
वृषे जाये घटे रन्ध्रे भौमदोषो न विद्यते ॥"
४- उच्चका गुरु लग्नमें स्थित हो तो मांगलिक दोष नहीं माना जाता। ऐसे जातकका विवाह अमांगलिक जातकसे किया जा सकता है।
५ -यदि शनि ग्रह १ । ४ । ७ । ८ । १२ भावमें किसी एक जातककी जन्मपत्रिकामें हो तथा दूसरे जातककी जन्मपत्रिकामें इन्हीं स्थानोंमेंसे किसी एक स्थानमें मंगल हो तो मंगलदोषका परिहार हो जाता है। विवाह शुभ माना जाता है।
६- यदि केन्द्र १ । ४।७।१० तथा त्रिकोण (५।९) भावमें शुभ ग्रह हों तथा ३, ६, ११ भावोंमें अशुभ ग्रह हों एवं ७ वें भावमें सप्तमेश हो तो मंगलदोष नहीं रहता ।
७- सातवें भावमें मंगल हो तथा गुरुकी उसपर दृष्टि हो तो मांगलिकदोष नष्ट हो जाता है।
८- गुरु और मंगलकी युति हो अथवा मंगल और चन्द्रकी युति हो या फिर चन्द्रमा केन्द्रस्थानों (१।४। ७।१०) में स्थित हो तो मांगलिकदोष नहीं रहता ।
९-१।४।७।८।१२ भावोंमें मंगल यदि चर राशि (मेष, कर्क, मकर) - का हो तो मांगलिकदोष नहीं होता ।
१०- एक जन्मपत्रिकामें जैसा मंगल तथा सूर्य और सूर्य, शनि, राहु, केतु आदि पापग्रह दूसरी जन्मपत्रिकामें भी हो तो मंगलदोष नहीं रहता। विवाह शुभ रहता है।
सूर्य एवं गुरुदोषविचार एवं परिहार - अशुभ स्थानोंपर सूर्य एवं गुरुकी स्थिति भी दोषपूर्ण मानी गयी है। ऐसी स्थिति आनेपर ज्योतिषी प्रायः इन ग्रहोंसे सम्बन्धित दान आदि करनेका विधान बताया करते हैं। तथापि इस समस्याके समाधानस्वरूप परिहाररूपमें अधोलिखित बात ध्यान देनेयोग्य है-
द्वादश वर्षसे अधिककी कन्या एवं षोडश वर्ष ( सोलह वर्ष ) - से अधिकका वर हो तो ज्योतिषके विद्वान् सूर्य एवं गुरुका विचार नहीं करते।
Ashtro-db
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