गौ पुराण पार्ट-2
📘 अध्याय 2
🕉️ गौसेवा, गौदान और उनका पुण्यफल
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2.1 – गौ सेवा का महात्म्य
श्लोक:
"गवां सेवां करोति यः स नरो यामिनीं शुचिः।
स याति परमं स्थानं, यत्र विष्णुर्निवेद्यते॥"
हिंदी अर्थ:
जो मनुष्य पवित्र भाव से गौ सेवा करता है, वह परम पद को प्राप्त करता है, जहाँ स्वयं भगवान विष्णु का निवास है।
व्याख्या:
गौ सेवा को वैकुण्ठ प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। यह सेवा देवसेवा के तुल्य है।
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2.2 – गौ दान का शास्त्रीय महत्त्व
श्लोक:
"यः प्रयत्यां गाम् ददाति, स याति परमां गतिम्।
सप्तजन्मकृतं पापं, क्षयं याति न संशयः॥"
हिंदी अर्थ:
जो मृत्यु के समय गाय का दान करता है, वह परम गति को प्राप्त करता है।
उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
व्याख्या:
गोदान मृत्यु समय का महादान माना गया है। इसे “वृषदान” भी कहा जाता है, जो यमदूतों से रक्षा करता है।
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2.3 – गोदान से स्वर्ग प्राप्ति
श्लोक:
"गोदानं सर्वदानानां श्रेष्ठं प्रोक्तं मनीषिभिः।
गोदानेन दिवं याति, सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥"
हिंदी अर्थ:
मनीषियों ने कहा है कि सभी दानों में गोदान श्रेष्ठ है।
गोदान करने वाला स्वर्ग प्राप्त करता है। यह सत्य है, सत्य है।
व्याख्या:
गोदान न केवल पुण्य देता है, बल्कि वह लोक-परलोक को सुधारने वाला अमोघ उपाय है।
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2.4 – गौसेवा से पितरों की तृप्ति
श्लोक:
"गोसेवया पितॄणां तृप्तिः स्यात् महती नृणाम्।
यावत् संप्राप्यते वर्षं, तावत् ते तृप्यन्ति नः॥"
हिंदी अर्थ:
गौ सेवा करने से पितरों की बड़ी तृप्ति होती है।
जब तक गाय का पालन होता है, तब तक पितृ तृप्त रहते हैं।
व्याख्या:
यह श्लोक दर्शाता है कि गोसेवा केवल इस लोक में ही नहीं, पितृलोक में भी कल्याणकारी है।
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2.5 – गौ सेवा = ब्रह्म यज्ञ
श्लोक:
"गवां पूजनमेकस्य ब्रह्मयज्ञसमं स्मृतम्।
तत्कृत्यं ब्राह्मणैर्नित्यं, विशेषेण गृहस्थितैः॥"
हिंदी अर्थ:
एक बार गौ पूजन करना भी ब्रह्म यज्ञ के समान फलदायी है।
विशेष रूप से गृहस्थों को यह नित्य करना चाहिए।
व्याख्या:
ब्रह्मयज्ञ वेदों का उच्चतम यज्ञ है — गौ सेवा भी उसी के बराबर पुण्यफल प्रदान करती है।
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2.6 – मृत्यु के समय गोदान की आवश्यकता
श्लोक:
"यः मृत्युकाले गोदत्त्वा नरः पश्यति गौमुखम्।
स लभेत परं स्थानं, विष्णुलोकं स गच्छति॥"
हिंदी अर्थ:
जो मनुष्य मृत्यु के समय गाय का दान करता है और गाय का मुख देखता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
व्याख्या:
मृत्यु समय पर "गोमुखदर्शन" विशेष महत्व रखता है। इसे धर्मराज द्वारा पार पाने के लिए आवश्यक बताया गया है।
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अध्याय सारांश:
गौ सेवा पुण्य का भंडार है और मोक्ष का मार्गदर्शक भी।
गौ दान मृत्यु के समय सर्वश्रेष्ठ कार्य माना गया है।
पितरों की तृप्ति, ब्रह्मयज्ञ का फल और विष्णुलोक प्राप्ति – सब गौसेवा में निहित हैं।
गृहस्थों को नियमित रूप से गोसेवा और गोदान करना चाहिए।
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अध्याय 2 का उद्देश्य:
गौ माता की सेवा व दान को केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि सांसारिक व पारलौकिक कल्याण का शास्त्रीय उपाय सिद्ध करना।
गौमय
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