प्रेत योग
प्रेत श्राप योग जिंदगी को हर तरह से तहस-नहस और बर्बाद कर देता है !
'प्रेत श्राप योग।' कहते हैं कि, जिस भी जातक की जन्म पत्रिका में शनि-राहु या शनि-केतु की युति होती है तो, इस युति को प्रेत शाप योग कहते हैं।
दूसरा यह कि, राहु अथवा केतु का चतुर्थ या दूसरे (कुटुम्ब स्थान) से संबंध होने पर या लग्न के अंश के समीप होने पर भी ये योग बनता है, यह योग या तो स्थायी होता है या फिर अस्थायी। गोचर और अंतरदशा अंतर्गत भी ये योग बनता है।
जहां तक सवाल शनि-राहु या शनि-केतु की युति से बनने वाले योग की बात है तो, यह युति जिस भी भाव में होती है, यह उस भाव के फल को बिगाड़ देती है या नष्ट कर देती है। ऐसे में व्यक्ति को हर कदम पर संघर्ष करना होता है और उसके जीवन में अचानक ही कोई घटना घट जाती है। ऐसी घटना जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता या अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता, इस योग के कारण एक के बाद एक कमरे तोड़ कठिनाइयां सामने खड़ी होने लगती हैं।
यदि शनि या राहू में से किसी भी ग्रह की दशा चल रही हो या आयुकाल चल रहा हो यानी उम्र के 7 से 12 या 36 से लेकर 47 वर्ष तक का समय हो तो मुसीबतों का दौर थमता नहीं है। ऐसा भी देखा गया है कि, इस उम्र के दौरान यदि किसी शुभ या योगकारी ग्रह की दशा काल हो और शनि+राहू की युति हो तो इस योग के कारण उक्त ग्रहों की दृष्टि का दुष्प्रभाव उस ग्रह पर हो जाने से शुभ फल नष्ट हो जाता है।
इस योग के अनिष्ट प्रभाव से सब कुछ खत्म जाता है !
यह पूर्व जन्म के दोषों में से शनि ग्रह से निर्मित पितृदोष है। यदि यह दोष किसी संतान में है तो, उसके जन्म लेने के बाद ही किसी पंडित से निवारण करवा लेना चाहिए।
कहते हैं कि, इससे जमीन-जायदाद संबंधी विवाद भी पैदा होते हैं, प्रॉपर्टी बिक जाती है, कारखाना या दुकान हो तो बंद हो जाते हैं, पिता पर कर्ज इतना चढ़ जाता है कि उसे चुकाना मुश्किल हो जाता है। नौकरी हो तो छुट जाती है।
मतलब घर में भूत प्रेत का असर हो रहा है !
यह भी कहा जाता है कि, ऐसे योग के कारण या ऐसे योग वाले के घर में जगह-जगह दरारें पड़ जाती हैं। सफाई के बावजूद बदबू आती रहती है। घर में से जहरीले जीव-जंतु निकलना भी इसकी निशानी है। मतलब यह कि, इस घर में प्रेत योग का असर हो रहा है।
यदि यह युति सप्तम भाव पर प्रभाव डाले तो, विवाह टूट जाता है।
अष्टम पर डाले तो जातक पर जादू-टोने जैसा अजीब-सा प्रभाव रहता रहता है और हो सकता है कि, उसकी दर्दनाक मौत हो जाए। नवम भाव में हो तो भाग्य साथ छोड़ देता है। एकादश भाव में हो तो मुसीबतों से लड़ते-लड़ते इंसान हारकर बैठ जाता है। इसी तरह कुंडली के हर भाव में इसका प्रभाव अलग-अलग होता है।
श्रापित दोष क्या होता है ?
राहु और शनि की युति से बनता है शापित योग शापित दोष कुंडली में राहु और शनि ग्रह की युति से बनता है। यह योग अलग- अलग भावों में भिन्न- भिन्न प्रकार के फल देता है। वहीं अगर राहु और शनि कुंडली में नीच अवस्था में विराजमान हैं तो, ये योग का फल अत्यधिक बुरा हो जाता है।
प्रेत दोष क्या होता है ?
जब किसी जातक के अंदर कोई प्रेत आत्मा या काली शक्ति प्रवेश करती है, उस दौरान वह मनुष्य अपने आप में नहीं रहता है, क्योंकि वह प्रेत आत्मा उसके तन मन धन पर अपना कब्ज़ा जमा लेती है और जो वह चाहती है वह मनुष्य वैसा ही करता है। इस स्थिति को प्रेत दोष कहा जाता है।
प्रेत कौन बनते हैं ?
अतृप्त आत्माएं बनती है भूत : जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है, अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, या आत्महत्या करता है !
उपाय:---
1. पितरों का अच्छे से श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
2. यदि कन्या हो तो गाय का दान और कन्या दान करना चाहिए।
3. शनि, राहु और केतु के उपाय करना चाहिए।
4. दोनों कान छिदवाकर उसमें सोना पहनना चाहिए।
5. छाया दान करना चाहिए।
6. अंधों को भोजन करवाना चाहिए।
8. कुत्तों को प्रतिदिन रोटी खिलाना चाहिए।
9. शराब पीना और मांस खाना छोड़ देना चाहिए।
10. ब्याज का धंधा करना और पराई स्त्री से संबंध छोड़ देना चाहिए।
11. शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
12. अंधे, अपंगों, सेवकों और सफाइकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें।
13. कभी भी अहंकार व घमंड न करें, विनम्र बने रहें।
14. किसी भी देवी, देवता और गुरु आदि का अपमान न करें।
15. तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ और जूता दान देना चाहिए।
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