लग्न भाव

जन्म कुंडली के प्रथम भाव से शारीरिक स्वास्थ्य , स्वभाव , जीवन की उन्नति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है । जन्म कुंडली में प्रथम भाव में  3 अंक लिखा है । अर्थात आपकी  मिथुन  लग्न की कुंडली है ।  मिथुन  लग्न के स्वामी  बुध   होते हैं अतः   बुध  आपके  लग्नेश है ।

मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्त्रियों के आशक्त, नृत्य संगीत, वाध्य आदी का प्रेमी, हास्य प्रविण, दुत कर्म करने वाला, मधुरभाषी, विनम्र, शिल्पज्ञ, विषय, चतुर, कवि, परोपकारी, सुखी, तिर्थ-यात्री, गणितज्ञ, ऐश्वर्यवान एवं मित्रवान, सुशील, दानी, अनेक प्रकार के भोगों के उपयोग करने वाला होता हैं। ऐसे व्यक्ति  कठिन परिश्रमी होते हैं एवं जीवन के प्रत्येक क्षण को सार्थक करने में लगे रहते हैं । दिन-रात परिश्रम करते रहना इनका स्वभाव बन जाता है । ऐसे व्यक्ति एक साथ कई कार्यों को करने का प्रयत्न करते हैं या एक साथ कई विषयों पर सोचते है ।  जिस क्षेत्र को यह अपनाते हैं उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त करते हैं । ऐसे लोगों को लिखने पढ़ने का विशेष शौक रहता है ।  यह अधिकतर लिखते हैं और बहुत अधिक पढ़ते हैं ।  पढ़ने की भूख इनमें बाल्यावस्था से ही पाई जाती है । यदि लग्न को गुरु देख रहा हो  तो लेखन कार्य में ख्याति अर्जित करते हैं परंतु ऐसे व्यक्ति का लेखन किसी एक विषय धारा या विषय पर ना होकर विविध विषयों पर होता है । ऐसा जातक रोचक भाषण देने में पटु होता है । विद्या व्यसनी होने के कारण ऐसे जातक का ज्ञानार्जन की ओर विशेष झुकाव होता है। साहित्य के प्रति भी उसमें विशेष लगाव पाया जाता है। फलस्वरूप वह साहित्यकार एवं कवि भी होता है । ऐसे व्यक्ति  जानबूझकर लोगों के झांसे में नहीं आते परंतु भावुकता के कारण इन्हें ठगा जा सकता है परंतु बहुत शीघ्र संभल जाते हैं ।  इनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली होती है जिसके कारण अनजान व्यक्ति को भी अपने बातों के माध्यम से प्रभावित कर लेते हैं और उससे अपना काम निकलवा लेते हैं । नृत्य , संगीत , वाद्य , हास्य प्रवीण  , मधुर भाषी , शिल्पाज्ञ ,  कवि ,  गणितज्ञ आदि के प्रेमी होते हैं ।

आपकी जन्मकुंडली में लग्न पर इन ग्रहों का प्रभाव है । अतः  ग्रहों के बल के अनुसार इनसे सम्बंधित मिले जुले स्वभाव एवं प्रभाव  रहेंगे  ।

गुरु - ऐसे व्यक्ति विद्वान , बुद्धिमान , विवेककी एवं ज्ञानी होते हैं । समाज में मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होती है । ऐसे व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में किसी भी बात को समझने की क्षमता रखते हैं । ऐसे व्यक्ति को प्रत्येक विषय का ज्ञान रहता है ।  किसी भी कार्य को आम व्यक्ति की अपेक्षा बहुत जल्द सीख लेते हैं । चेहरे पर तेज होता है । भव्यता होती है । धर्म में विशेष रूचि होती है ।  ऐसे व्यक्ति मैं किसी को भी समझाने की क्षमता अच्छी होती है । ऐसे व्यक्ति लंबे होते हैं एवं शरीर मोटा होता है । 

राहु - राहु प्रधान व्यक्ति में शनि के संबंधित गुण रहते हैं ।  ऐसे व्यक्ति जल्दी हिम्मत नहीं हारते हैं । बहुत संघर्ष करते हैं । जीतने के लिए संघर्ष करते रहते हैं  । ऐसे व्यक्ति बहुत जुगाड़ू होते हैं  । प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने से पीछे नहीं हटते ।  ऐसे व्यक्तियों का कई बार बनता काम अंत में बिगड़ जाता है । 

 केतु - केतु के प्रभाव वाले व्यक्तियों में में मंगल से संबंधित गुण होते हैं । ऐसी व्यक्ति  में धैर्य की कमी होती हैं  । मन एकाग्र नहीं रहता है ।  स्वभाव उग्र होता है । यदि अपने कार्य के या योजना के बारे में किसी को पहले बता देते हैं तब वह कार्य बिगड़ जाता है और सफलता प्राप्त नहीं होती है ।  ऐसे व्यक्तियों के शरीर या चेहरे पर चोट के या किसी प्रकार के निशान होते हैं । 
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♦️सूर्य आपकी कुंडली में छोटे भाई-बहन एवं पराक्रम के स्वामी होते हैं ।  
👉सूर्य षष्ट भाव में अंश बल में कमजोर है एवं उस पर शनि की दृष्टि है । भाई-बहन के सुख में कमी एवं परेशानी होती है । शत्रु पक्ष सें परेशानियों का सामना करना पड़ता है । पेट में किसी प्रकार की बीमारी होने की संभावना रहती है । जीवन में  सही प्रकार से उन्नति नहीं हो पाती  है ।

♦️चंद्रमा आपकी कुंडली में धन एवं कुटुम्ब  के स्वामी होते हैं ।  
👉चंद्रमा पक्ष बल एवं अंश बल में बिल्कुल कमजोर है एवं उस पर राहु की दृष्टि है । जिसके कारण विद्या - बुद्धि एवं संतान के क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ता है । धन एवं कुटुंब के सुख में बहुत ज्यादा कमी होती है । धन का संग्रह नहीं हो पाता है ।  कुटुंब से भी पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है । मानसिक परेशानी बनी रहती है । एकादश भाव में दृष्टि के कारण बहुत अच्छी आमदनी होती है ,  परंतु कमजोर एवं पीड़ित होने के कारण लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है ।

♦️मंगल आपकी कुंडली में रोग , शत्रु  , बड़े भाई एवं आमदनी के स्वामी होते हैं ।  मंगल आपकी कुंडली में अकारक ग्रह होते हैं । 
👉मंगल पर राहु एवं शनि की दृष्टि है । अतः भाग्य की उन्नति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । उच्च शिक्षा प्राप्त करने में भी परेशानी होती है ।  आमदनी प्राप्त करने में परेशानी होती है ।  शत्रु पक्ष से भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । द्वादश भाव में शनि पर दृष्टि के कारण बाहरी स्थानों के संपर्क से परेशानी होती है । फिजूल खर्च के कारण भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । तृतीय भाव में दृष्टि के कारण पराक्रम में वृद्धि होती है ।  भाई बहन का सुख प्राप्त होता है । चतुर्थ भाव में दृष्टि के कारण माता भूमि ,  भवन के सुख में कठिनाइयों के साथ सफलता प्राप्त होती है ।

♦️बुध आपकी कुंडली में शारीरिक स्वास्थ्य , सौंदर्य , आयु ,  जीवन में उन्नति ,  माता  , भूमि , भवन एवं घरेलू सुख के स्वामी होते हैं ।  बुध  आपकी कुंडली में कारक ग्रह होते हैं । 
👉शत्रु पक्ष पर प्रभाव रहता है परंतु शारीरिक स्वास्थ्य एवं जीवन की उन्नति में कठिनाई तथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है । माता ,  भूमि ,  भवन के सुख में भी कमी होती है । द्वादश भाव में दृष्टि के कारण बाहरी स्थानों के संपर्क से जीवन में उन्नति होती है ।

♦️गुरु आपकी कुंडली में पति / पत्नी , दैनिक व्यवसाय , पिता , राज्य एवं रोजगार के स्वामी होते हैं ।  गुरु को केंद्राधिपति दोष लगता है अतः गुरु का बलवान होना आवश्यक है । 
👉शारीरिक स्वास्थ्य ,  सौंदर्य ,  सम्मान एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है । पिता राज्य एवं रोजगार के क्षेत्र में सुख ,  सम्मान तथा सफलता प्राप्त होती है । पंचम भाव में दृष्टि के कारण विद्या - बुद्धि एवं संतान के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है । सप्तम भाव में दृष्टि के कारण पत्नी एवं वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त होता है । दैनिक व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है । पत्नी भी रोजगार करने वाली होती है । नवम भाव  में दृष्टि के कारण कुछ कठिनाइयों के साथ भाग्य की उन्नति होती है ।
(  गुरु राहु के साथ विराजमान है जिसके कारण उपरोक्त लाभ में कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है । )

♦️शुक्र आपकी कुंडली में विद्या , बुद्धि ,  संतान ,  बाहरी स्थानों से  संपर्क एवं खर्च के स्वामी होते हैं ।  शुक्र आपकी कुंडली में कारक ग्रह होते हैं । 
👉विद्या - बुद्धि एवं संतान के सुख में कुछ कमी तथा परेशानी होती है । आप अपनी बुद्धिमता खर्च एवं चतुराई के माध्यम से शत्रु पक्ष पर सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं । द्वादश भाव में दृष्टि के कारण खर्च अधिक रहता है परंतु बाहरी स्थानों के संपर्क से जीवन में उन्नति होती है  लाभ प्राप्त होता है ।

♦️शनि  आपकी कुंडली में आयु ,  भाग्य ,  धर्म एवं उच्च शिक्षा के स्वामी होते हैं ।  शनि  आपकी कुंडली में  कारक एवं सामान्य अकारक ग्रह होते हैं । 
👉द्वादश भाव में शनि पर मंगल की दृष्टि है । भाग्य की उन्नति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय जन्म स्थान से दूर या बाहरी स्थानों के संपर्क से होता है । खर्च अधिक रहता है । द्वितीय भाव में दृष्टि के कारण धन एवं कुटुंब के सुख में कठिनाई तथा परेशानी होती है । षष्ट भाव में सूर्य पर दृष्टि के कारण शत्रु पक्ष से परेशानियों का सामना करना पड़ता है उसके बाद सफलता प्राप्त होती है । भाई बहन के सुख में भी परेशानी होती है । नवम भाव में शनि स्व राशि में मंगल पर दृष्टि डाल रहे हैं, जिसके कारण भाग्य की उन्नति में कठिनाइयों के साथ सफलता प्राप्त होती है । आमदनी प्राप्त करने में भी परेशानी होती है ।

♦️👉राहु
राहु  लग्न में गुरु के साथ विराजमान है । अतः कुछ कठिनाइयों के साथ शारीरिक स्वास्थ्य एवं जीवन के उन्नति में सफलता प्राप्त होती है । पंचम भाव में चंद्रमा पर दृष्टि के कारण विद्या- बुद्धि एवं संतान के क्षेत्र में कठिनाई तथा परेशानी होती है ।  धन एवं कुटुंब के सुख में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । सप्तम भाव में दृष्टि के कारण पत्नी एवं वैवाहिक जीवन के सुख में परेशानी होती है । नवम भाव में मंगल पर दृष्टि के कारण भाग्य की उन्नति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।  उच्च शिक्षा प्राप्त करने में भी परेशानी होती है । आमदनी प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।

♦️👉केतु
कुछ कठिनाइयों के साथ पत्नी एवं वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त होता है । दैनिक रोजगार में सफलता प्राप्त होती है । एकादश भाव में दृष्टि के कारण आमदनी प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । कभी अचानक लाभ प्राप्त होता है तो अचानक नुकसान भी हो जाता है । लग्न में दृष्टि के कारण शारीरिक स्वास्थ्य एवं जीवन की उन्नति में कठिनाई तथा परेशानी होती है । तृतीय भाव में दृष्टि के कारण पराक्रम में वृद्धि होती है  परंतु भाई-बहन के सुख में कमी तथा परेशानी होती है ।


_ज्योतिष कोई परमात्मा नही यह आपका मार्ग दर्शक है_

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