कुंडली का अष्टम भाव
नमस्कार मित्रों,
विषय:-मारक ग्रहों का मारकत्व
👉कुंडली का अष्टम भाव आयु भाव होता है भावत् भावन विधि से अष्टम से अष्टम अर्थात तृतीय भाव भी आयु भाव है।
👉 सभी भावों का द्वादश स्थान व्यय भाव होता है।
👉 आयु का व्यय स्थान अर्थात द्वितीय और सप्तम भाव मारक स्थान कहलाता है तथा इनके स्वामियों को मारकेश।
👉 इन दोनों में से सप्तमेश को अधिक बली मारकेश माना गया है। आयु खंड समाप्त होने पर सप्तम भाव के स्वामी मरण जैसा अशुभ फल देने में द्वितीयेश से अधिक तत्पर रहता हैं।
👉 द्वितीयेश और सप्तमेश के अतिरिक्त द्वितीय और सप्तम भाव में बैठे पापी ग्रह या इन्हीं दो भावेशों से युक्त पापी ग्रह मारक होते हैं।
👉 यहां पापी ग्रह का ग्रहण 3, 6 और 11 भावेशों से है।
👉इसके अतिरिक्त द्वादशेश से संबंध रखने वाला शुभाशुभ ग्रह के दशा में भी कभी-कभी मरण संभव हो जाता है।
👉यहां समझना चाहिए द्वादश भाव में बैठे ग्रह की बात नहीं हो रही है द्वादशेश से संबंध रखने वाला ग्रह की दशा अंतर्दशा की बात हो रही है।
👉 द्वितीयेश और सप्तमेश से युक्त त्रिषडाय भाव के स्वामीयों की दशा में भी मृत्यु होती है।
👉शनि यदि त्रिषडाय भाव का स्वामी होने के साथ-साथ मारक भावेशों से संबंध रखता हो तो किसी पापी भावेश की अन्तर्दशा का प्रतिक्षा ना करते हुए अपने महादशा में और अपने ही अंतर्दशा में मरण देने में तत्पर रहते हैं।
👉 द्वादश भाव का स्वामी की दूसरी राशि यदि त्रिषडाय भाव में हो तो द्वादशेश के दशा में भी मृत्यु जैसा अशुभ फल मिलता है।
👉एक प्रश्न स्वाभाविक ही उत्पन्न होता है यदि आयु खंड समाप्त ना हुई हो और मारकेश की दशा आ जाए तब क्या होगा?
👉इस परिस्थिति में परिवार और परिजनों से निरंतर कलह होना, अपने कर्मों के परिणाम स्वरूप लज्जित होना, धन का अभाव में रहना, निकट संबंधियों की मृत्यु से शोक में पीड़ित रहना, लगातार शत्रुओं से घिरे रहना अथवा रोग ग्रस्त रहने जैसे फल प्राप्त होता है।
👉 मरण कब? आयु खंड समाप्त हो चुका हो, मारकेश की दशा चलती हो, मारकेश पापी हो अर्थात मारकेश की दूसरी राशि त्रिषडाय भाव में हो या केंद्र भाव में होकर किसी पापी ग्रह से संबंध रखें या किसी पापी भाव में हो, संबंधित या असंबंधित पापी भावेश की अंतर्दशा हो तो मरण संभव होती है।
यहां सर्वदा ध्यान रखना चाहिए कि पापी मारकेश की महादशा में संबंधित शुभ ग्रह (त्रिकोणेंश) की अंतर्दशा में या शुभ ग्रह की महादशा में संबंधित पापी मारकेश की अंतर्दशा में मरण नहीं होती है। असंबंधित रहने पर मरण संभव है।
मरण देने में सक्षम भावेशओं की सूची।
१) द्वितीयेश की दशा।
२) द्वितीय भाव में बैठे पापी भावेशों की दशा।(३, ६,११)
३) सप्तमेश की दशा।
४) सप्तम भाव में बैठे पापी भावेशों की दशा।
५) द्वितीयेश से युक्त पापी भावेशों की दशा।
६) सप्तमेश से युक्त पापी भावेशों की दशा।
७) अष्टमेश की दशा।
८) पापी द्वादशेश की दशा।
९) पापी द्वादशेश से संबंधित शुभाशुभ ग्रह की दशा।
१०) राहु केतु की दशा।
💠 उपरोक्त प्रकार के भावेशों के विषय में पहले ही कहा जा चुका है पर राहु केतु का के लिए कुछ विशेष नियम और शर्तें लागू होती है।
👉 एकल स्थिति में त्रिकोण भाव में होने पर या त्रिकोणेंश के साथ त्रिकोण भाव में होने पर राहु केतु मारक नहीं होते।
👉 किसी त्रिकोणेश के साथ मारक भावों में रहने पर भी राहु और केतु मारक नहीं होते।
👉पर शुभ भाव में अर्थात त्रिकोण में यदि मारक भावेशों के साथ हो तो प्रबल मारकेश होते हैं।
👉 संक्षेप में शुभ भावों में बैठे राहु केतु यदि मारक ग्रहों से युक्त हो तो मारक होंगे और अशुभ भाव में बैठकर यदि त्रिकोणेंश से युक्त हो तो शुभ फल दात्री होंगे।
👉 इसके अतिरिक्त ज्योतिष के आदि ग्रंथों में मृत्यु दशाओं के विषय में कुछ और नियम कह गए हैं जिसे हम यहां उल्लेख करते हैं।
👉 अष्टमेश यदि दु:ख भावों (6,8,12)में हो तो अष्टमेश की दशा मृत्यु पद होती है।
👉 शनि जिस ग्रह के राशि में हो उसे ग्रह के दशा और अष्टमेश के अंतर्दशा भी मृत्यु पद होती है।
👉 अष्टमेश के महादशा में अष्टमेश के साथ बैठे पापी ग्रह त्रिषडायेश (3, 6,11) के अंतर्दशा में भी मृत्यु संभव होता है।
👉लग्नेश यदि राहु केतु से युक्त होकर 6,8,12 भाव में कहीं हो तो अष्टमेश व लग्नेश के साथ स्थित ग्रह दशा मरणप्रद होती है।
👉उक्त स्थिति में यदि लग्नेश व अष्टमेश के साथ कोई ग्रह ना हो तो लग्नेश व अष्टमेश जिस ग्रह के राशि में हो वह दशा मृत्यु दायक होती है।
👉 उक्त ग्रह के महादशा में जब राहु की अंतर्दशा आए तब से आगे की अंतर्दशा में मृत्यु होती है।
👉 अर्थात महादशा से मरण निश्चय करके जब तक राहु की अंतर्दशा उसमें ना आए तब तक जीवित रहेगा।
👉 राहु, केतु, गुरु, शनि आदि अंतर्दशा में से जो ग्रह मरण लक्षण युक्त हो उसकी अंतर्दशा में भी मृत्यु संभव है।
👉 लग्नेश अष्टमेश अथवा दशमेश इसमें से जो निर्बल हो और राहु केतु से युक्त हो उसकी दशा अंतर्दशा में भी मृत्यु होती है अथवा उक्त महादशा में जब महादशेश पर दृष्टि रखने वाले या साथ बैठे ग्रह की अंतर्दशा आए तब मृत्यु कहे।
👉 अष्टम में यदि अष्टमेश स्थित हो तो उसकी दशा अंतर्दशा में रोग उत्पत्ति होती है।
👉 लग्न में लग्नेश हो तो लग्नेश की दशा अंतर दशा में शरीर कष्ट होता है परंतु बाद में यह रोग संपूर्ण समाप्त होकर आनंद मिलता है।
👉 लग्न में शीर्षोदय राशि मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुंभ में से कोई हो तो तुला लग्न में धनेश की महादशा, स्थिर लग्न सिंह, वृश्चिक, कुंभ में लग्नेश की दशा तथा मिथुन कन्या लग्न में राहु के दशा में मृत्यु होती है।
👉 पृष्ठोदय राशि अर्थात मेष वृष कर्क धनु एवं मकर राशि लग्न हो तो लग्न में स्थित द्रेष्काणेश की दशा, द्रेष्काणेश पर दृष्टि रखने वाला ग्रह की दशा अथवा द्रेष्काणेश के साथ बैठे ग्रह की दशा में मृत्यु होती है।
👉 इसे और स्पष्ट करते हुए कहते चले मेष, कर्क और मकर लग्न में लग्न द्रेष्काणेश, वृष लग्न में द्रेष्काणेश से दृष्ट ग्रह की दशा तथा धनु लग्न में द्रेष्काणेश के साथ बैठे ग्रह की दशा में मृत्यु होती है।
✍आज यहीं समाप्त करते हैं अगला लेख में कोई और नए विषय को लेकर उपस्थित होंगे तब तक के लिए नमस्कार। 🙏🙏🙏
Astroprofessor-db
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