कुंडली में चंद्र का पीड़ित होना
जन्म कुंडली मे चंद्रमाँ जब सबसे ज्यादा पीड़ित होता हैं तोह जातक सबसे ज्यादा परेशान होता हैं क्योंकि घर के सुख माता के खुद का सुख मन का सुख, इनकम का सुख का कारक होने से जातक सभी चीज़ो मे खुद क़ो असहाय महसूस करता हैं शनि चंद्र ज़ब वृश्चिक राशि मे 4थे भाव मे हों तोह जातक खुद का जीवन नीरस महसूस करके अकेले रहने लगता हैं, खुद से बाते करता रहता हैं खुद ही खुद सत्वना देता हैं क्योंकि कोई उसका साथ नी देता। सबके लिए करता हैं पर बदले मे उसे अकेलापन मिलता हैं, ऐसा जातक पुरे परिवार का दुख दर्द अकेले उठाता हैं यहाँ तक की तकलीफ मे लोगो से कर्ज़ा, उधार, अपनी कुछ चीज़े गिरवी रख के उनको सुखी करने मे लगाता हैं फिर उसकी कदर नी होती। चौथा भाव जातक के लिए सबसे बडा एहम होता हैं क्योंकि ओ जो भी करता हैं घर परिवार के लिए ही करता हैं दिन रात मेहनत करता हैं गालिया खाता हैं ओ सबकुछ करता हैं और बदले मे सिर्फ थोड़ा इज्जत और खुशी चाहता हैं ओ ही न मिले तोह ओ खुद की परवाह नहीं करता तब।फिर ख़राब चंद्र उसको अँधेरे मे ले जाता हैं क्योंकि मन असांत होने से ओ हर चीज क़ो देर से करने लगता हैं चुकी शनि चंद्र अग्नितत्व राशि मे होने से और शनि चंद्र का योग विष योग साथ ही ओ अग्नितत्व राशि मे हैं तो गरम ज़हर यानि शराब की ओर जातक अग्रसर होने लगता हैं शनि देर रात तक आने जाने की प्रवृति की ले जाता हैं ओ शराब की ओर जाने से राहु एक्टिव होने से ओ खुद नशे की ओर ले जाता हैं। चंद्र शनि के ख़राब होते ही शुक्र के फल नहीं मिलते नतीजा उसका काम दिन प्रतिदिन खत्म होने लगते हैं। राहु प्रबल खराबी मे उश्के दोस्ती यारी बढ़ती जाती हैं जोकि सही नहीं होती। यदि जातक की माँ जिन्दा हैं और स्वस्थ हैं तोह ओ फिर भी रास्ते आ तो जाता हैं लेकिन तबतक सब खराब हुआ पाता हैं। ऐसे ही कारण से 7वा भाव ख़राब होने लगता हैं क्योंकि जैसे 4था भाव शुक्र चंद्र बुध के शुभ असर के लिए माना जाता हैं वैसे ही चंद्र का शुक्र के घर मे अच्छा माना जाता हैं ज़ब दोनों ख़राब हों तोह दोनों भाव का असर ख़राब होने लगता हैं नतीजा पत्नी के साथ कलेश और अलगांव होने से से 5th भाव यानि संतान पर भी बुरा असर पड़ने लगता हैं और तब एक्टिव होता हैं 8th भाव ससुराल का जहाँ शुक्र यानी पत्नी आकर बैठ जाती हैं जिससे जातक की परेशानी चरम पर होने से ओ बीमार होने लगता हैं शनि जोकि पहले ही ख़राब हैं काम धंदे के हाल ख़राब और कानूनी तौर पर तलाक की ओर बढ़ जाता हैं।जो लोग जानबूझकर दूसरे का हक नी देते कोई भी हों धन ज़मीन मारने की कोसिस करते हैं उनका चंद्र कभी भी शुभ फल नहीं देता ऐसे लोग किसी न किसी तरह से परेशान होते रहते हैं उनकी संताने भी उनके किये कर्म का भागी बनती हैं। जिन जातको का काम दूकानदारी वाला है यानी उनको डेली धन का अडानी प्रदान करना पड़ता है उनको बुध शुक्र और चंद्र तीनो को सही रखना होता है एक भी बिगड़ा तोह पैंसा उधारी बड़ी मुश्किल से मिलेगा और बेकार के झंजटो मे धन बर्बाद होगा यदि लोन लेके धंदा खोला है तोह शुक्र की स्थति मज़बूत रखे और यदि शुक्र सूर्य मंगल राहु से पीड़ित हुआ तोह लोन नहीं चूका पाएंगे क्यूंकि धंदा तोह सुरु होगा पर रुक रुक के चलेगा यदि घर के बुजुर्ग बड़ी बिमारी के शिकार होरे है तोह कर्ज लेने से बचना चाइये क्यूंकि केतु की चोट सबसे बुरी होती है ये अचानक वाले हाल पैदा करता है.. शुभ ग्रह की यदि दसा अशुभ हुयी तोह ये पाप ग्रह से अधिक पीड़ा दायी होती है उतनी पाप ग्रह की नहीं होती जैसे सूर्य मंगल गुरु... चंद्र और राहु की दसा मे हुआ लव और शादी ज्यादा समय नहीं टिकती भले ही सुरु बड़ी गहरी हुयी हो ये तब तक सही होता है ज़ब तक 7वा भाव जागृत नहीं होता ज़ब ये जागृत होता है माहौल ही बदल देता है यदि चंद्र 6 राहु 8 का हुआ तोह शादी ज्यादा से ज्यादा 4साल तक ही चलती है यदि शुक्र गुरु की अवस्था सही है तब भी चलेगी जरूर पर आये दिन कलेश यही फिर तीसरे की एंट्री के संकेत भी होते है क्यूंकि घर का माहौल जीने लायक होगा नहीं फिर सहारा ढूंढो कहीं और क्यूंकि ख़राब चंद्र ये बड़ी खूबी है की ओ दूसरे मे अपने को खोजता है फिर सारे रिश्ते जाये भाड़ मे...
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