पाप कतरी योग
क्या होता है कुंडली मैं पाप कतरी( कैंची )योग ⁉️
कुंडली के बारह भावों में से यदि किसी भी भाव के दोनों ओर अर्थात भाव के आगे और पीछे वाले भाव में पाप ग्रह (सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु) स्थित हों तो इसे पाप कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो पाप ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे भाव की शुभता में कमी और संघर्ष आता है, जिस भी भाव में पाप कत्री योग बनता है या जो भी भाव पाप कत्री योग में आ जाता है उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों को लेकर जीवन में संघर्ष उत्पन्न होता है जैसे यदि लग्न भाव पाप कत्री योग में आ रहा हो अर्थात लग्न के दोनों और पाप ग्रह हो तो ऐसे में स्वास्थ की स्थिति में उतार चढ़ाव बना रहता है यश और प्रसिद्धि नहीं मिल पाती यदि धन भाव में पाप कत्री योग बन रहा हो तो जीवन में आर्थिक पक्ष को लेकर संघर्ष आता है इसी प्रकार कुंडली के किसी भी भाव के दोनों और पाप ग्रह उपस्थित होने पर बना पाप कटरी योग उस भाव के कारक तत्वों की हानि करता है।
अब यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है शुभ कत्री और पाप कत्री योग केवल कुंडली के भावों को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि ग्रहों को भी प्रभावित करते हैं अर्थात यदि कोई ग्रह शुभ कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में वृद्धि होती है और यदि कोई ग्रह पाप कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में संघर्ष उपस्थित होता है उदहारण के लिए यदि कुंडली में धन और समृद्धि का कारक शुक्र दो शुभ ग्रहों के बीच में हो अर्थात शुभ कत्री योग में हो तो ऐसे में अच्छी आर्थिक स्थिति और समृद्धि देने में यह योग साहयक होगा और यदि शुक्र के आगे और पीछे पाप ग्रह होने से शुक्र पाप कत्री योग में हो तो ऐसे में जीवन में आर्थिक संघर्ष उत्पन्न होता है और आर्थिक स्थिति अपेक्षित नहीं होती। इसी प्रकार कोई भी ग्रह शुभ कत्री योग में होने पर बली और पाप कत्री योग में कमजोर हो जाता है।
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