शनि


👉क्या आप जानते है की शनि ज़ब भी किसी की कुंडली मे अपनी दशा, साढ़े साती, ढ़ाईया,मे आने वाले होते है तोह कुछ महीने पहले ही उनके असर सुरु हो जाते है कम से कम 2 से 4 महीने पहले से और ज़ब ये अपनी महादसा खत्म करके जाते  है तोह उसका प्रभाव अगले 6 से 8 तक रहता है लगभग लोग ये महसूस भी करते है इनका प्रभाव लम्बा ब्याप्त रहता है, ग्रह मे शनि भी जीवन मे कम भूचाल नहीं लाते लेकिन राहु ही जिम्मेदार माना जाता है लोग कहने पे लगे है धन चाइये तोह राहु को मनाओ उनको ये पता नहीं की राहु दिखावे का धन्यवाद देता है जो आया सिर्फ हाथ तक पहुंचा और गायब. मान लो दे भी दे लेकिन जो देता है ओ भी जो पहले का होगा ओ भी जाते जाते बर्बाद कर देता है. खेल शनि और केतु के होते है जिनको समझना थोड़ा कठिन है क्यूंकि ध्यान ही नी देते है.. राहु का ऐसा कोई उपाय नहीं है जो धन दिलवा दे बिना शनि के बिना शुक्र के बिना केतु के.

मार्च मे शनि राशि बदल रहे है और अधिकतर को उनके आगमन के फल के शुभ अशुभ आभास होने लगा है. भले ही समझ न पा रहे हो, शनि की चाल अपने मंद गति से चलती है उनके फल भी उसी तरह मिलते है, शनि की मार ऐसे होती है जैसे एक पिता की एक गुरु की होती है जो घर और ज्ञान की जिम्मेदारी को समझने की शिक्षा देता है, दुनियादारी मे कैसे जीना है शनि सिखाता है खास्तर अपनी महादसा मे ये उनलोगो से दूर कर देता है जो अपने बनके रहते है साथ पर होते नहीं है, इसीलिए शनि प्रधान आदमी की दोस्ती बहुत कम होती है ये ज्यादातर खुद पर ही भरोसा रखते है लेकिन माता और पत्नि का सम्मान बहुत करते है यही इनके सुखी होने का कारण भी भी होता है, अशुभ शनि जातक को गरीबी से उठने नहीं देता न घर का सुख देता है घर होते हुए भी काम के लिए दर दर भटकता है एक सुकून की रोटी भी नी मिलती ये शनि अशुबता की निसानी है..

 अगर धन हुआ भी तोह लोग लपेट लपेट के खा जाते है इनको ऐसे आदमी को फिर भी उनको माफ़ करता है लेकिन ज़ब अशुभ मंगल और राहु से युति करेंगे तोह तब इनके परिणाम थोड़ा घातक होते है दुशरो के घर व ज़मीन को धोके से हड़पना और लोगो को अनायास ही दुख देना इनकी प्रवृति बन जाती है जिससे ये बददुआ के भागी बनते है और इनके आगे के परिणाम केतू पर निर्भर हो जाते है तब इनका किआ इनकी संताने भोगति है जो की कल बता ही चूका हूं ये तीनो एक ही कर्म के तीन पहलु है राहु केतु शनि. एक जो उकसा के कर्म ख़राब करवाता है

 व्यक्ति तब न तोह कर्म न धर्म किसी को भी नी मानता माता पिता पत्नि को निचा दिखा के अपमान करता है, और तब शनि अपनी सभी दसा मे इनके पाप कर्मो को सुधारने के लिए उकसाते है पर नहीं समझते है क्यूंकि कलयुग है जो व्यक्ति के सर पर वास करता है उसके बाद ज़ब बात धर्म की आती है तो केतु फल अंतिम फल होते है, आपने देखा होगा ज़ब व्यक्ति के अंतिम दिन आते है तब भी उसका लालच चरम पर होता है ये मेरा है ओ मेरा है सबको बहुत बोलता भी लेकिन. लास्ट के कुछ दिन ओ बहुत रोता है सबको अचानक से समझाने लगता है की ये गलत है ओ गलत है जो मैंने किआ ओ मत करना. कभी बैठना समय मिले तोह ऐसे व्यक्ति के धोरे फिर सुने लोग हैरान रहते है की जो पहले करना था ओ लास्ट मे कर रहा है क्यूंकि उसके किये कर्म आगे पीढ़ी के हिस्से पड़ने वाले लिखें है भोगने लिखें है ये भी कर्ज ही है पिता का बेटा चुकायेगा उष्का उसका बेटा आज के समय मे पोता चुकाता है ओ भी दुखी ही मिलता है...

श्री वैदिक ज्योतिष अनुसन्धान 
7587536024

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