बुरे कर्म


बुरे कर्मों का चक्र कैसे तोड़ें?

क्यों ध्यान देना चाहिए आपको अपने कर्मों पर

कर्म का एक यूनिवर्सल सिद्धांत है कि आप जो करते हैं, वो लौटकर आपके पास जरूर आता है। यानि जो कर्म आप कर रहे हैं, वो कभी निष्फल नहीं होता। उसका परिणाम आपको देर-सवेर भले भुगतना पड़ जाये, पर वो लौटकर आपके पास जरूर आता है। अगर आप दुखी हैं तो उस दु:ख का कारण कोई और नहीं, बल्कि आप खुद हैं। कई बार तो आपके दुखों को पिछले जन्म के कर्मों से भी जोड़ा जाता है। पिछले कई जन्म के आपके अच्छे और बुरे कर्म जमा हो रहे हैं जिन्हें ‘संचित कर्म’ कहा जाता है और उन्हीं में से थोड़ा-थो‌ड़ा कर्म आपको अगले हर जन्म में चुकाना पड़ता है।
क्यों ध्यान देना चाहिए आपको अपने कर्मों पर

आप केवल अपने अच्छे कर्मों से ही इस चक्र को रोक सकते हैं और कुछ जन्मों बाद इस संचित कर्म से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन अगर आप हर जन्म में बुरे कर्म भी करते जायेंगे, तो ये कर्मों की गठरी घटने की बजाय बढ़ती ही जायेगी और न तो आपके दुखों का अंत होगा और न ही जन्मों के चक्र का। दुःख आपके कर्मों का फल है, यह तभी दूर हो सकता है जब मन को अशुभ प्रभावों से बचाया जाए। अशुभ कर्म करनेवाले व्यक्ति को फलभोग के लिए जन्म लेना ही होगा।
तरीके जिससे अच्छे कर्म का आप हिस्सा बन जाते हैं

कर्म-सिद्धांत में, जन्म लेना अपने आप में महान्‌ कष्ट है क्योंकि जन्म का सम्बन्ध मृत्यु से है। मृत्यु सबसे डरावना कष्ट माना गया है। इसलिए यदि इस कष्ट से छुटकारा पाना है तो जन्म की परम्परा को समाप्त करना होगा। कई लोग अपनी आत्मा को इस जन्म के चक्र से बचाना भी चाहते हैं। वे ये तो समझते हैं कि अच्छे कर्म, बुरे कर्मों के प्रभाव को कम कर देते हैं जिससे वर्तमान जीवन में मिलने वाला दु:ख खत्म हो जाता है लेकिन, वो इसके प्रति ज्यादा सचेत नहीं रहते। शुभ कर्म करना हमेशा शुभ सोचने से ही हो सकता है। कष्ट के बचने का यही एक उपाय है। इसलिए, ये आवश्यक है कि आप अच्छे कर्म करना अपनी दैनिक आदत बनाएं, ताकि गलती होने की गुजांइश कम से कम हो। तो चलिए जानते हैं कुछ तरीके जिससे अच्छे कर्म का आप हिस्सा बन जाते हैं-
1. अपने जीवन को एक सकारात्मक उद्देश्य दें

हर व्यक्ति को कहीं न कहीं पता होता है कि उन्हें जीवन में आगे कैसे बढ़ना है और उसके लिए कौन से तरीके इस्तेमाल करने हैं। कुछ लोग गलत तरीके से अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं और कुछ लोग क्षणिक दु:ख से बचने के लिए गलत तरीका इस्तेमाल कर लेते हैं। अगर आपमें नैतिकता की कमी है, तो इसका परिणाम अक्सर आपके आसपास के लोगों को भुगतना पड़ता है और उन्हें मिली तकलीफ आपके कर्मों में जुड़ जाती है। इसलिए कोशिश करें कि जीवन में हमेशा सही मकसद के लिए आगे बढ़ें जिससे आपके साथ-साथ समाज का भी कल्याण हो।

2. चेतना या जागरूकता के साथ कोई काम करें

कर्म में आपके इरादे को बहुत महत्ता दी गई है। वेदों में कहा गया है कि सचेत होकर किए गए कार्य कहीं अधिक गंभीर होते हैं, बजाए बिना सोचे-समझे किए गए कार्य के। अगर आप अनजाने में, गैर इरादतन कोई बुरा काम कर देते हैं तो शायद आप उसके बुरे दुष्प्रभाव से बच सकते हैं लेकिन अगर आपने सोच-समझकर कुछ गलत किया है तो उसका परिणाम आपको भुगतना पड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर, छोटे बच्चे नए कर्म की रचना नहीं करते हैं क्योंकि वे सही और गलत का अंतर करने में अक्षम होते हैं। इसलिए अगर किसी चीज की आपको जानकारी नहीं है, तो पहले उसके प्रति जागरुक हों, उसका विश्लेषण करें और फिर उसे करने का फैसला लें।
3. अच्छी भावनाओं को प्रबल बनाएं

कई बार आपका मन जब आहत होता है या भावनाएं नकारात्मक हो जाती हैं, तो आप सोचने-समझने की क्षमता खो देते हैं और इसका प्रभाव आपके कर्म और उससे मिलने वाले फल पर पड़ता है। इसलिए, ये जरूरी है कि आप अच्छी भावनाओं को प्रबल बनाएं, जैसे कि दया करना, दूसरों की मदद करना, दूसरों का दु:ख बांटना, सहिष्णु बनना, आस्थावान बनना, परोपकारी होना आदि।
4. खुद की गलतियों की जिम्मेदारी लें और दूसरों से अच्छे से पेश आएं

जब आप कुछ गलत करते हैं तो अक्सर दुनिया को या अपनी भावनाओं को इसका दोष देते हैं। जैसे कि आपने किसी पर चिल्ला दिया और आप फिर यह कहकर बच जाते हैं कि मुझे गुस्सा बहुत आता है, इसलिए मैंने ऐसा कर दिया। मैं ऐसा दिल से नहीं करना चाहता था या चाहती थी। वह दोष देकर आप खुद को मुक्त तो कर लेते हैं लेकिन इससे आप अपनी गलती को समझ नहीं पाते हैं। कई बार आपकी ऐसी हरकत सामने वाले को भी दुखी कर देती है। इसलिए, ये जरूरी है कि आप अपनी कमजोरियों और भावनाओं पर काम करें। इसके लिए अध्यात्म में कई रास्ते बताये गये हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं।

5. आस्थावान बनना
अच्छे कर्मों को करने के लिए जरूरी है कि आप कर्मों के परिणामों में यकीन रखें। आपको खुद को ये बार-बार याद दिलाना है कि आप इस दुनिया में किस मकसद से आये हैं। आपको खुद को उस सर्वोच्च-शक्ति को सौंप देना होगा ताकि वो लालच जो आपके मन में इस भौतिक दुनिया को लेकर है, वो खत्म हो जाये। उसके लिए आपको मंदिर-मस्जिद की ठोकरें खाने की जरूररत नहीं बल्कि आपको बस अपनी आत्मा को शुद्ध करना है।

पाप और पुण्य

हमारे वेदों में कर्मों की प्रधानता पर इसलिए जोर दिया गया है ताकि आप एक संतुलित जीवन व्यतीत करें और जन्मों के चक्र से बच सकें। अगर आप पाप-पुण्य को ध्यान में रखकर कर्म करेंगे तो शायद आपके लिए ये जीवन काटना कठिन हो जाये क्योंकि पाप और पुण्य की सही-सही समीक्षा किसी को पता नहीं।

 किसी को नहीं पता कि कौन सा कर्म आपको पाप का भागीदार बनाता है और कौन सा नहीं।

Astro-db
श्री वैदिक ज्योतिष अनुसन्धान 
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