राहु केतु के शुभाशुभ स्थिति व दशा फल पद्धति।
नमस्कार मित्रों,
विषय:-राहु केतु के शुभाशुभ स्थिति व दशा फल पद्धति।
✍ ग्रहों का दशा फल पद्धति मूल रूप से महामुनी पराशर का अवदान है।✍मूल ग्रंथ से इन विधानों को पढ़कर हृदयस्त करना कठिन होने के कारण मुगल कालीन विद्वान ज्योतिषियों का एक समूह लघु पाराशरी नाम का एक ग्रंथ को प्रस्तुत किया जहां मूल रूप से भावेशों का दशा फल पद्धति को विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।✍पर यहां से भी पढ़ कर ज्योतिष शास्त्र का विधान यू कहे व्याकरण को समझना आसमान से गिरकर खजूर पर लटकने बराबर जैसा है। ✍शायद इसीलिए वर्तमान ज्योतिष वर्ग दशा फल के अध्ययन किए बगैर ही फलित करना प्रारंभ कर देते हैं। ✍जबकि वास्तव में इसके ज्ञान बिना ज्योतिष में एक पल भी चलना त्रुटि पूर्ण है।✍ आज केवल हम राहु और केतु का दशा फल पद्धति पर कहेंगे।✍
✍वास्तव में चंद्रमा के उत्तर अक्ष 5 अंश सूर्य के विरुध दिशा में झुके रहने से सूर्य के सनमुख होने पर भी उत्तर धूव के 0 - 5 अंश पर सूर्य के बिम्ब कभी नहीं पुहंचता जिस कारण वहां अंधकार तो नहीं कहा जा सकता एक धुंध की तरह धुएँदार वातावरण उत्पन्न होता है जो 45 अंश का कोण बनाकर किसी एक राशि पर पड़ता है और यही राहु है।✍ सूर्य के किरण चंन्द्र पर पड़कर जो प्रतिबिंब उत्पन्न होकर विभिन्न राशियों पर चमकता है वह केतु है। ✍मूल रूप से तामसिक माने जाने वाले इन ग्रहों का गुण दोष (1) इनका भाव और राशि स्थिति पर निर्भर करता है। (2) यह जिन ग्रहों से युक्त है उनका गुण स्वभाव पर निर्भर करता है। (3) चंद्र की शुभता अशुभता पर निर्भर करता है। ✍इस लेख में चुँकि दशा फल पद्धति को कहेंगे इसलिए प्रथम दो स्थिति का ग्रहण उचित होगा तीसरा स्थिति भाव फल का सूक्ष्म विचार में करें। ✍
✍ एकल स्थिति में राहु और केतु का सर्वाधिक शुभ फल त्रिकोंण भाव में रहने पर होता है।✍ क्योंकि यहां वे त्रिकोंण भावेशों का गुण ग्रहण कर फल प्रदान करते हैं। ✍
✍ इसी तरह एकल स्थिति में केंद्र भाव में रहने पर इनका व्यवहार केंद्र भावेश की तरह तटस्थ रहता है।✍
✍ त्रिषडाय भाव में एकल स्थिति में इनका व्यवहार अशुभ होता है तथा अष्टम भाव में अष्टमेश की तरह सदा अशुभ।
✍ द्वितीय व द्वादश भाव में इनका व्यवहार इन्हीं भावों के स्वामियों की तरह सम होता है। ✍
✍ उपरोक्त मुख्य व्याख्या राहु और केतु का विषय में लघु पाराशरी में पाया जाता है।✍ व्यावहारिक रूप से उक्त व्याख्या बहुदा उपयोगी सिद्ध नहीं होता है।✍ कहां जा सकता है कि यह कथन मात्र है वास्तव में राहु केतु का दशा फल विभिन्न तरह से प्रभावित होकर शुभ अशुभ कुछ भी हो सकता है। ✍
✍ निसंदेह राहु केतु का सबसे उत्कृष्ट शुभ फल एकेला त्रिकोंण भावों में होने पर मिलता है। ✍मान लिया जाए राहु लग्न में स्थित है स्वाभाविक ही केतु सप्तम में होगा।✍ अब सप्तम का दूसरा राशि सम, त्रिषडाय, केंद्र अथवा अष्टम में हो सकता है। इन चारों में से जो भी सप्तम भाव का दूसरा राशि हो उसका शुभाशुभ गुण को ग्रहण तो केतु करेगा ही राहु के साथ दृष्टि संबंध स्थापित कर लग्नेश का शुभता को भी ग्रहण करेगा।✍ इस तरह से लग्न में राहु का फल शुभ व सप्तम में केतु का एकल स्थिति में दशा फल निर्विवाद रूप से शुभ अशुभ मिश्रित होगा। ✍
✍ इसी तरह मान लीजिए केतु पंचम में एकल स्थिति में है स्वाभाविक ही राहु एकादश में होगा।✍ अब केतु त्रिकोंण का शुभ या मिश्रित गुण जो भी हो वैसा ही फल प्रदान करेगा।✍अन्य तरफ एकादश का दूसरा राशि त्रिकोण, केंद्र, त्रिषडाय, सम अथवा अष्टम में भी हो सकता है।✍ अब एकादश में बैठे राहु एकादश का दूसरा राशि त्रिकोण में पड़े तो मिश्रित, केंद्र में पड़े तो अशुभ, त्रिषडाय में पड़े तो कुछ अधिक अशुभ, सम भाव में पड़े तो भी अशुभ तथा अष्टम में पड़ने पर अति अशुभ फल प्रद होगा। ✍इसके अतिरिक्त राहु और केतु के बीच में दृष्टि संबंध स्थापित होकर दोनों ही अपने-अपने ग्रहण किए गए गुण दोष से परस्पर फल को प्रभावित करेगा।✍ यहां शुभ :: अशुभ का प्रतिशत पंचमेश का शुभता और एकादशेश का अशुभता पर निर्भर करेगा।
✍जिन लग्नों में पंचमेश या नवमेश दोष मुक्त है उन लग्नों में एकादश भाव में बैठे राहु व केतु शुभाशुभ मिश्रित फल करता है। ✍ज्योतिष के विभिन्न वर्गों में प्रचलित यह कथन सभी लग्नों के लिए वेद वाक्य बनकर रह गया है।✍ विद्वान और बुद्धिमान दैवज्ञ सर्वदा पंचमेश का शुभता और एकादश का अशुभता का विचार करने का उपरांत ही एकादश में बैठे राहु व केतु का फल कथन करेंगे।✍ ज्योतिष वर्ग में प्रचलित यह कथन की 8 12 भाव में राहु सर्वदा अशुभ फल देंगे या उपचय भावों में (3, 6,10,11) राहु व केतु सर्वदा शुभ फल देंगे यह भी एक कथन मात्र ही है। 8 12 भाव अशुभ तो है पर इनकी अशुभता का कोई निश्चित मानक नहीं है।✍
✍अष्टमेश लग्नेश भी हो सकता है, सूर्य अथवा चंद्र भी हो सकता है, केंन्देश, त्रिकोणेंश या त्रिषडायेश भी हो सकता है।
✍ वृष, कन्या, वृश्चिक लग्न में अष्टमेश का दूसरा राशि क्रमश: एकादश, तृतीय, एकादश में पढ़ने से इन लग्नों में अष्टमेश प्रबल अशुभ हैं। इस कारण इन लग्नों में राहु केतु का स्थिति प्रबल अशुभ फल प्रद है।✍
✍धनु व मकर लग्न में अष्टमेश क्रमश: चंद्र और सूर्य होने से यहां राहु व केतु आयु का ह्रास तो नहीं करता पर अन्य तरह से पीड़ादायक अवश्य है। ✍जैसे रोग, आमदनी में रुकावट, व्यापार में उतार-चढ़ाव इत्यादि। ✍
✍कर्क और मीन लग्न में अष्टमेश का दूसरा राशि केंद्र भाव में पढ़ने से इन दो लग्न में अष्टमेश में स्थित राहु केतु का फल प्रबल अशुभ होगा।✍
✍मिथुन, सिंह व कुंभ लग्न में अष्टमेश का दूसरा राशि क्रमश: पंचम, नवम व पंचम भाव में पढ़ने से इन लग्नों में अष्टम में स्थित राहु व केतु का फल शुभाशुभ मिश्रित है। ✍
✍मेष और तुला लग्न में लग्नेश ही अष्टमेश है इसलिए इन दो लग्नों में अष्टम भाव में स्थित राहु व केतु लग्नेश का गुण को ग्रहण कर शुभ फल देते हैं। ✍
✍ द्वादश भाव में राहु केतु का फल द्वादशेश की दूसरी राशि का शुभता अशुभता तथा द्वादशेश के साहचर्य (युक्त) ग्रह की शुभता आशुभता पर निर्भर करता है।✍
✍ मेष, मिथुन, तुला और धनु लग्न में द्वादशेश का दूसरा राशि क्रमश: नवम, पंचम, नवम, पंचम भाव में पढ़ने से इन 4 लग्नों में राहु केतु का फल अति शुभ है।✍
✍ वृषभ व वृश्चिक लग्न में द्वादशेश की दूसरी राशि क्रमश: सप्तम और अष्टम भाव में पढ़ने के कारण इन दो लग्न में द्वादश भाव में राहु केतु का दशा फल अत्यंत अशुभ होता है।✍
✍कर्क मकर व मीन लग्न में द्वादशेश की दूसरी राशि क्रमश तृतीय, तृतीय एवं एकादश भाव में पढ़ने से इन तीन लग्न में द्वदश भाव में स्थित राहु केतु का दशा फल अशुभ होता है। ✍
✍ सिंह व कन्या लग्न में द्वादशेश क्रमश चंद्र और सूर्य है।✍ इनका कोई दूसरा राशि भी नहीं है इसलिए इन दो लग्न में राहु केतु का शुभ अशुभ फल चंद्र और सूर्य के साथ युक्त ग्रह की शुभता और अशुभता पर निर्भर है।✍ अब चंद्र और सूर्य का साहचर्य ग्रह शुभ, अशुभ, तटस्थ कुछ भी हो सकता है तदनुसार ही राहु केतु का द्वादश भाव में होने का दशा फल कहे।
✍ उपचय भाव में (3, 6,10,11) राहु केतु का फल शुभ होता है यह भी एक कथन मात्र है।✍दरअसल आदि संस्कृत रचनाओं से पढ़कर अशुद्ध अर्थ निकालने का परिणाम स्वरूप ज्योति स्वर्ग में उक्त कथन प्रचलित हो गया है।✍ राहु व केतु जो कि नैसर्गिक रूप से पापी उपचय भाव में होने से हैं शुभ तो है पर भाव के लिए स्वयं के लिए नहीं। ✍उपचय भाव में राहु केतु सहित सभी पापी ग्रह भाव का वृद्धि या भाव फल का वृद्धि करता है।✍जैसे तृतीय भाव में शौर्य और पराक्रम का वृद्धि, षष्ठ में निरोगता और दबंगई का, दशम भाव में कर्म का आकार प्रकार का वृद्धि और एकादश भाव में कर्म फल अर्थात लाभ आदि का वृद्धि कारक है। ✍जहां तक उपचय भाव में बैठे राहु केतु का दशा फल की बात हो तृतीय व एकादश भाव में बैठे राहु केतु का फल के विषय में पहले ही कहा जा चुका है।✍
✍ षष्ठ भाव में राहु हो तो स्वाभाविक ही द्वादश में केतु होगा।✍ मेष, मिथुन, तुला, धनु और कुंभ लग्न में षष्ठ भाव की दूसरी राशि क्रमश: तृतीय, अष्टम, सप्तम, एकादश व चंद्र होने से इन पांच लग्नों में षष्ठ भाव में बैठे राहु व केतु का दशा फल अत्यंत अशुभ प्रतीत होते हुए भी शुभाशुभ मिश्रित है क्योंकि इन लग्नों में द्वादश भाव में बैठे केतु शुभ फल प्रद होते हैं।✍कारण की इन्हीं लग्नों में द्वादश की दूसरी राशि त्रिकोंण भाव में है तथा केतु के साथ राहु का परस्पर दृष्टि संबंध से राहु का आधा शुभ फल कहे या शुभाशुभ मिश्रित कहे फल प्रद होता है।✍
✍इसी तरह वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक व मकर लग्न में षष्ठ भाव का दूसरा राशि क्रमश: लग्न, नवम, पंचम, लग्न व नवम में पढ़ने से इन लग्नों में बैठे राहु शुभाशुभ मिश्रित फल देंगे तथा इन्हीं लग्नों में द्वादश में बैठे केतु की शुभता राहु से आधा होगा क्योंकि इन पांचो लग्न में द्वादश भाव का दूसरा राशि क्रमश: केंद्र, त्रिषडाय, (कन्या को छोड़) केंद्र, त्रिषडाय भाव में पढ़ने से अशुभ है।✍ कन्या लग्न में द्वादश भाव सूर्य का सिंह राशि में पड़ता है यहां सूर्य का शुभ अशुभ ग्रहों के साथ युक्ति पर केतु का शुभता निर्भर करता है। ✍
✍अंत में आते हैं दशम भाव में राहु केतु का दशा फल पर।✍दशम भाव में राहु केतु का फल दशम भाव तथा चतुर्थ भाव का शुभता पर निर्भर है।✍ अर्थात दोनों केंद्र भाव होने से दोनों ही तटस्थ स्थान है। ✍दशम और चतुर्थ का दूसरा राशि केंद्र त्रिकोण, त्रिषडाय या सम भाव मैं हो सकता है।✍
✍मेष लग्न में दशमेश शनि का दूसरा राशि एकादश भाव में पढ़ने से दशमेश अशुभ है।✍चतुर्थ भाव चंद्र का कर्क राशि में है। ✍चंन्द्र का कोई दूसरा राशि नहीं होने के कारण चंन्द्र इस लग्न में तटस्थ है।✍ अब दशम में राहु और चतुर्थ में केतु हो तो परस्पर दृष्टि संबंध स्थापित कर दोनों ही अशुभ फल प्रदान करेगा।✍
✍वृष लग्न में दशम भाव शनि का कुंभ राशि में है तथा शनि की दूसरा राशि नवम भाव में है। ✍इस तरह से शनि योगकारक हुए।✍चतुर्थ भाव सूर्य का सिंह राशि में है जो कि एक तटस्थ भाव है।✍ अब यदि राहु दशम में होगा तो शनि का योगकारक गुण को ग्रहण कर अति शुभ फल प्रदान करेगा इसी तरह केतु भी राहु के साथ दृष्टि संबंध स्थापित कर योगकारक फल प्रदान करेगा। ✍
✍ मिथुन लग्न में दशम भाव गुरु का मीन राशि में पड़ता है। ✍गुरु का दूसरा राशि सप्तम भाव में है। गुरु दोनों भाव से तटस्थ है तथा गुरु पर केंद्राधिपति दोष भी लगता है।✍ अन्य तरफ चतुर्थ भाव बुध का कन्या राशि में पड़ता है, बुध का दूसरा राशि ही लग्न है।✍ इसलिए बुध योगकारक हुए तथा यहां बैठे राहु केतु भी योगकारक। ✍दशम में इन दोनों में से जो भी हो वह भी परस्पर दृष्टि संबंध स्थापित कर योगकारक फल देने में सक्षम होगा।✍
✍अलग-अलग तीन लग्न में राहु केतु का भाव फल कहने के पश्चात हम समझते हैं लेख का अधिक विस्तार को ध्यान में रखते हुए यहीं समाप्त करना चाहिए।✍ अन्य लग्नों में दशम भाव में बैठे राहु केतु का दशा फल इसी पद्धति का प्रयोग में लाकर करना चाहिए। ✍आज यहीं समाप्त करते हैं अगला लेख में कोई और नए विषय को लेकर उपस्थित होंगे तब तक के लिए नमस्कार। 🙏🙏🙏
_ज्योतिष कोई परमात्मा नही यह आपका मार्ग दर्शक है_
*हर तरह की कुण्डली बनवाने या सटीक कुण्डली विश्लेषण हेतू आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं*_
Astro-db
श्री वैदिक ज्योतिष अनुसन्धान
फोन-7587536024
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें